चश्मे का नंबर बढ़ा !!———————————-बिन चश्मे का बचपन थाहर कोई दोस्तहर कहीं अपनापन था।ज्यों-ज्यों चश्मे का नंबर बढ़ा ।त्यों-त्यों सच्चाई से पर्दा हटा ।राजनीति का बुखार कुछ ऐसा बढ़ा।पैनी नज़रें,चढ़ती भौंहेंऔर माथे पर तेवर है चढ़ा ।।पहले चेहरे शीशे थेअब पूछ कर भी शक करते हैं ।सब ठीक, मज़े में सुन कर भीबस शिकन की चाहत करते हैं ।हम चाय का कप थमा जबदोस्ती का दम भरते हैं ।वो धर्म की मक्खी देखचाय पीने से डरते हैं ।।।मुक्ता शर्मा ।।
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वाह…क्या बात है सोच के चश्में की…..बेहद उम्दा कटाक्ष लिए…बदलते परिपेक्ष में नैतिक मूल्यों के होते हनन पर…..जय हो….
सही कहा आपने c.m.Sharma jiभाव समझने के लिए बहुत धन्यवाद
Bahut sundar….
Anu maheshwari ji आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी
Bahut badiya
धन्यवाद डाक्टर स्वाती जी
Lovely sarcasm……..
धन्यवाद जी
bahut sunder
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बेहद उम्दा ………कटाक्ष शैली अति प्रभावपूर्ण है !
धन्यवाद भाई जी