कवि – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा (बिन्दु) यहाँ अपना पराया कुछ भी नहीं है दोस्त जो था जो है जो रहेगा सब एक सपना है। जिसे हम अच्छा समझते थे, दगा दे गया उसूलों की बात करता, पर कौन अपना है।
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बहुत खूब।।
बहुत बहुत धन्यवाद
bahut sundar…
सुक्रिया
अति सुंदर ……..!
तहे दिल आभार
प्रशंसनीय
सुक्रिया मित्र
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद
sahi kaha……….
बहुत बहुत आभार जी
सच कहा
बहुत बहुत शुक्रिया झटक
Very true……..
Bahut bahut sukriya