एक ही दिन का शोर, खूब मचा था,
मातृ दिवस के नाम पे मंच सजा था।
सब ने अपनी माँ पे खूब प्यार बरसाया,
नई नई कविताओं का हार पहनाया।
काश यह प्यार, यह आदर हमेशा रहे,
माँ के प्रति यह सन्मान दिल से बहे।
न मनाओ कोई मातृ दिवस और अब,
अपनी माँ के लिए इतना करना बस।
बुढ़ापे में उसे वृद्ध आश्रम न छोड़ आना,
अपने ही घर से उसे न पड़े बाहर जाना।
जब तक एक भी माँ को रहना होगा वहाँ,
तब तक यह दिवस मनाना बेमानी है यहाँ।
अनु महेश्वरी
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बहुत अच्छी कविता
Thank you,Swati ji…
Nice mam
Thank you, Rakesh ji…
अच्छी रचना अनु जी
Thank you, Bindeshwar ji…
सत्य कहा आपने …………………….हमे दिखावे की अंधी दौड़ से निकलकर……..ऐसी विषमताओं को जड़ से नष्ट कर हकीकत का जामा पहनाने की आवश्यकता है, चाहे वो माँ के लिए हो , बेटी पर हो रही चर्चाओं पर हो या वृद्धो की दशा पर चल रहे विचारो पर हो !!
Thank you, Nivatiya ji…
sahi kahti hain aap……….dikhaawa…dhong….ka rishton mein kya kaam…or fir maa baap ke saath….kyoon ?
Thank you, Sharma ji…
Sahi kaha ……..
Thank you, Shishir ji…