मैं उज्ज्वल भविष्य का काकल हूँमैं उदास निगाहों की हलचल हूँ |प्यासे होठों की प्यास काहल हूँकठिनाई में दिखताऔझल हूँ |नुक्क्ड़ की शोभाअविरल हूँतन्हा खड़ा एकमुश्किल हूँ |अधनगे बच्चों काखेल हूँसभी धर्मो का एकमेल हूँ |कभी कभी ही चलता हूँकभी तो एक पल चलता हूँप्यास नहीं बुझाता क्योंकिमैं एक सरकारी नल हूँ |
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बहुत बढ़िया राकेश जी
Thanks mam
sundar rachna….
Aabhar apka
कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना
……. वाह
बहुत खूबसूरत राकेश जी …………प्यास नहीं बुझाता हूँ सटीक नहीं लग रहा ……….जैसा की आपने रचना में कहा “कभी कभी चलता हूँ या कभी एक पल चलता हूँ” अर्थात अपनी भूमिका निभाता अवशय है ………….इसलिए ……….इसकी ऐसा कर सकते है ……….
मेरे सहारे जीवित है कुछ लोग
कभी कभी ही सही मगर
अपना फ़र्ज़ निभाता हूँ
यदा कदा चल जाता हूँ
कुछ बे-सहारो की प्यास बुझाता हूँ !!
Thank you so much for your valuable advice sir.
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Aabhar aap sabhi ka
sundar kathan…………..
Nice one……….