धागे प्रेम के….कच्चे कहाँ होते हैं…देखो ‘माँ’ ड्योढ़ी पे है खड़ी…अकेली….भूखी…प्यासी….स्थिर काया…एकटुक निहारती…वीरान सी पगडण्डी लगती है उसे…भीड़ इतनी आती जाती में भी…बेखबर दुनियाँ सारी से…ड्योढ़ी पे है खड़ी….अंतर्मन में…पगडण्डी की तरह…कितनी मीलों चल रही है…अकेली…\/सी. एम् शर्मा (बब्बू)
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waah………………
तहदिल आभार आपका….madhukarji….
उत्तम
तहदिल आभार आपका…..Muktaji….
बहुत ही सुन्दर
तहदिल आभार आपका….Bhawanaji…
Bahut sundar…
तहदिल आभार आपका….Anuji…..
इसीलिए तो जाना जाता है की माँ शब्द में समस्त बह्मांड समाया हुआ है …………बहुत खूबसूरत उदगार ……!!
सही कहते हैं आप……तहदिल आभार आपका…..Nivatiyaji….
Nice sir
तहदिल आभार आपका…Rakeshji….
बहुत ही अच्छी कविता सर्!!
तहदिल आभार आपका….Swatiji….