गर्भ में सहमी सी बेटी,अपनी माँ से पूँछ रही।क्या गुनाह किया है मैंने, मुझे गर्भ में ही मार रहीं।।मैं तो तेरा अंश हूँ माँ, फिर भी क्यूँ स्वीकार नही,तेरी वात्सलयी ममता पर, क्यूँ मेरा अधिकार नही,रोरोकर बिनती करती हूँ,यूँ करो मेरा तिरस्कार नहीं,अस्तित्व बनने से पहले ही,मेरा अस्तित्व मिटाओ नहीं,गर्भ में सहमी सी बेटी, अपनी माँ से पूँछ रही।क्या गुनाह किया है मैंने, मुझे गर्भ में ही मार रहीं।।बेटा बेटी हैं एक समान, क्यूँ तुमको ये सरोकार नहीं,रानीलक्ष्मी बाई की, वीरगाथा भी तुमको याद नहीं,न कर पाएं बेटी जिसको,ऐसा कोई काम नहीं,फूल है बगिया की, घर की कोई धूल नही,गर्भ में सहमी सी बेटी,अपनी माँ से पूँछ रही।क्या गुनाह किया है मैंने, मुझे गर्भ में ही मार रहीं।।इस धरा पर आने दो माँ, छूकर आसमान दिखलाऊँगी,तेरे इस उपकार को मैं,आजीवन नहीं भुलाऊंगी,नाम करूँगी रोशन जग में,परिवार का नाम बढ़ाऊंगी,गर्व होगा आपको मुझपर, काम कुछ ऐसा कर जाऊंगी,गर्भ में सहमी सी बेटी,अपनी माँ से पूँछ रही।क्या गुनाह किया है मैंने, मुझे गर्भ में ही मार रहीं।।By: Dr Swati Gupta
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Atyant bhavuk……………
Thanks a lot Sir.
अत्यंत भावुक और मन को छु लेने बाली रचना।
Thanks a lot bhawna ji
behad bhaavuk…………
Thanks a lot Sir.
बेहद खूबसूरत एवं मार्मिक रचना …..अति सुंदर !!
Thanks a lot Sir
Wha wha wha
Thanks a lot Rakesh ji
Bahut sundar, Swati ji…
Thanks a lot Anu