गदा ए इश्क के कासे में अब थोड़ी सी रहम की भीख तो ड़ाल देवारफ्तगी में फंसा हूॅं घायल मेरे सीने से तीर तो निकाल दे।न कत्ल तुम कर तेग-ए-सितम से वो मेरे जीने की ये आरजूसख्ती कसाने इश्क ओ साइल पर अब और न कोई सवाल दे।तुम्हारी सर्भगी दीद और तुम्हारे गेसुओं के शायक हम भी थे कभीइक शिकस्ता.ओ मुन्तशिर बन गया अब और न कोई मलाल दे।मेरे खोये हुए इशरत-ए-रफ्ता मेरे आशनाई अब मुझे लौटा दोताबे-जल्वा-ए-दीदार-ए-दोस्त मेरे हमदम इल्फात-ए-अहवाल दे।बहुत फेरे लगाये आस्तान-ए-यार की सह लिए जौर-ए-जफारह गया महरूम वफ़ाए इश्क से बस अब हाथ में करताल दे।बे तकल्लूफ में हम जी रहे थे अब तलक अपने नसीब लेकर बदल अपने खिसाल-ए-सरिश्ते मिजाज अब मुझे इतिसाल दे।अब कहॉ वो सब्र-ओ तहम्मुक वो मेरे जज्बात-ए-जुस्तजूमेरे जराहते-दिल में सख्ती-कसाने-इश्क तो मोमिसाल दे।दिल-ए.रंजूर कबतलक तड़पेगा गाफिल-ए-पागलों की तरहउलझकर रह गई है जिंदगी इस कदर अब न खिसाल दे।
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Bindu Ji, mere level se kahin unche darje ki urdu hai isliye main comment dene me asamarth hun…..
बिंदुजी….बस इतना समझ आया की रचना के भाव ज़बरदस्त हैं…हाहाहा मतलब साथ में देते तो ज्यादा अच्छा होता….बाकी शब्दों के मतलब देने के साथ लफ्ज़ “सर्भगी” “इतिसाल” स्पष्ट करने आपसे गुज़ारिश करता हूँ…
बहुत अच्छे उर्दू शब्दों का तालमेल बिठाने की कोशिश की है आपने ………………बिंदु जी !
मुझे लगता है की कुछ शब्द आपने अपने हिसाब से इज़ाद कर तालमेल बिठाने की कोशिश ……….या हिंदी शब्दों को उर्दू में फिट करने के चक्कर में या तो टंकण त्रुटि या अन्य कारणों से अर्थ समझ पाने में असमर्थ होना स्वाभाविक है !
Wha wha