दर्द मुझे कितनो ने दियासब भूल जाना चाहता हूँदर्द को सीने से लगा कर दर्द को जी लेना चाहता हूँकब किसने सीने पर वार कियाकब किसने पीठ पर खंजर भोंकासब भूल जाना चाहता हूँदर्द को जी लेना चाहता हूँथी भूल मेरी ये गैरो को अपना बनाने कीअपनों ने भी बेरुखी ऐसी कीकी सब अब राख कर देना चाहता हूँमैं अब और कुछ नहींजज्बातो के जंजाल से रिहाई चाहता हूँनींद अगर मौत आने से आयेतो मैं अब मौत चाहता हूँ दर्द को सीने से लगा करदर्द को अपना बना करसब भूल जाना चाहता हूँदर्द को जी लेना चाहता हूँ —अभिषेक राजहंस
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बहुत खूबसूरत ………….मगर “नींद अगर मौत आने से आये तो मैं अब मौत चाहता हूँ” …..नकारात्मक भाव प्रस्तुत करती है ………..जो उचित नहीं है .!!
सही कह रहे है
इस लाइन को बदल देता हूँ
बहुत सुन्दर
Nice expression of thoughts ……………..
good
Bahut sundar bhav…