प्यार है अंधा, माँ कहती हैं, माँ से सीखा है मैंनें नो महीने, गर्भ में रख, किया प्यार सो लिखा मैंनें। कितना था विश्वास जमाया,कितनी ही ममता जागी होगीकितने सपने बून बून कर, मन मिठास कर पायी होगी। वही प्यार जब आंगन आया, खुशियों से सब का मन भाया दादा बन गये, दादी कोई, नूतन मेहमान जब घर को आया। माँ का दर्द तो माँ ही जाने, पिता का धर्म पिता पहचानेहो गया देखो हल्ला शोर, नाच नाच सब कर रहा भोर । सोचो अब तुम बड़े हो गये, अपने पैर पर खड़े हो गये अब तुमको क्या करना है, माँ पिता के लाडला हो गये। याद करो बचपन के दिन, मात पिता को करो न खिन्न तेरी भी अब होगी शादी, तेरे भी तो अब होंगे दो-तीन। शिक्षा संस्कृति संगत एकता, से उसने पहचान करायी इसी से व्यक्तित्व है बनता, जग में ये गुणगान करायी। इसी को कहते पूरा जीवन, माँ – बाप की सेवा करना इससे बड़ा न दूजा कोई, सुख चैन ये मन में भरना।
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बहुत ही सुन्दर।
बेहद खूबसूरत बिंदु जी ………………माँ के चरणों में जितनी स्तुति की जाए कम है !
Bahut sundar
bahut sundar…………….