माँ तुम हो ऐसी,धूप में छाँव जैसी।मझधार में हो,पतवार जैसी।।जाड़े में,सुहानी तपिश के जैसी।धुन्ध में हो तुम,रोशनी के जैसी।।जीवन में कष्ट अगर कोई आता,दुनिया में देता कोई न सहारा,अपना आँचल माँ, तब तू फैलाती,अपनी बाहों का झूला बनाती,दामन में अपने,मुझको छिपाकर,मेरे सारे कष्टों को दूर भगाती,माँ तुम हो ऐसी,धूप में छाँव जैसी।मझधार में हो,पतवार जैसी।।जाड़े में,सुहानी तपिश के जैसी।धुन्ध में हो तुम,रोशनी के जैसी।।जीवन की राह में शूल बिछे है,फूलों से ज्यादा काँटे भरे हैं,मेरी माँ दुख के काँटे हटाती,खुशियों के फूलों को चुन चुन के लाती,अंधेरी घटा को,दूर हटाकर,आस की दीपक, मन में जगाती,माँ तुम हो ऐसी,धूप में छाँव जैसी।मझदार में हो, पतवार जैसी।।जाड़े में,सुहानी तपिश के जैसी।धुन्ध में हो तुम,रोशनी के जैसी।।By:Dr Swati Guptahttps://youtu.be/VoICfwkmEWY
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माँ के लिए सुन्दर कविता
Thanks a lot abhishek
Sundar rachna….
Thanks a lot Anu
बेहद सुन्दर…………
Thanks a lot Sir
बहुत ही सुन्दर कविता है। 👌👌👌👌👌
Thanks a lot bhawna ji