न जाने कब से आसमां अंगारों मे जलता रहा है दहकते शरारों को जमीं और चाँद मे बदलता रहा है इन्सानों का हाल भी कुछ आसमां के जैसा है जो हैवानियत को इंसानियत के साँचे मे ढलता रहा है पर अब ये सिलसिला बदल रहा है जैसे चाँद भी अंगारों सा जल रहा है जैसे इन्सानो की इंसानियत फ़ना हो रही हैहैवानियत का रूप ले जवां हो रही है गर चलता रहा ये सिलसिला तो आसमां रोएगा जला के खुद को प्रलय के आगोश मे सोएगाजीना है आसमां को तो चाँद को जीना होगा हैवानियत मे इंसानियत का अक्स संजोना होगा गुनहगार को मिटाने से इंसान ही मिटेगा गुनाह के मिटने मे इंसा की जिंदगी है मिटाने का हक़ यहाँ किसको मिला है बनाते रहने मे ही खुदा की बंदगी है । देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Bahut khoob. Sahi dishaa bhodh karaati hai……….
Bahut sundar rachna…
बहुत ही खुबसूरत।