चित चोर बड़ा बृजभान सखी भाग -4
यश , पौरुष , प्रेम कलेश मिले ।
धन , वैभव , ज्ञान विशेष मिले ।
सुख , शांति , अनंत अभाजित हो ।
युग नीति , नया उपदेश मिले ।
कर ध्यान , निवारक एक वही ।
सब सूद समेत निवेश मिले ।
शत अष्ट अलंकृत हैं धड़ ये ।
हर नाम जपे मिथलेश मिले ।
अति सुन्दर…… शब्द अविभाजित है या अभाजित….और ‘हर’ ‘हरि’ होना चाहिए….पंजाबी में ‘हरि’ को ‘हर’ बोला जाता है…और किसी भाषा में बोला जाता मुझे नहीं पता….
बहुत सुंदर अनुभूति.. पहली पंक्ति के अंतिम चरण.. प्रेम कलेश (नकारात्मक शब्द) मुझे समझ नहीं आ रहा।