आजकल कविताओं का मूल्य नहीं है गीत-संगीत का भी नहीं प्यार का तो थोड़ा सा भी मूल्य नहीं है .पर मूल्य बढ़ा है अब उन वस्तुओं का जो कभी बिकी नहीं है .जो अब बिक रही है पानी आग और हवा भी .बिक रही है अब लोगों की मान -इज्जत .लोगों की भूख देह की सभी अंग -प्रत्यंग .यह विज्ञापन का युग है माँ-बाप की प्यार और मातृदुग्ध का तो मूल्य ही नहीं है .
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Sundar bhaav. Ek do staanon par shabdon ke sahi prayog se aur sudhaar aa jaaegaa aisa mera maannaa hai. Jiase. Geet sangeeton ki jagah geet sangeet. Bika nahi hai ke sthaan par Biki nahin hai ityaadi.
धन्यवाद आपको
बहुत सही कहा आपने ………………आप गैर हिंदी भाषी परिवेश से होने के बावजूद हिंदी के प्रति आपका प्रेम सराहनीय है …. …..जैसा की शिशिर जी ने कहा कुछ स्थानों पर हिंदी के अनुरूप टंकण सुधार की आवश्यकता है जैसे लिंग भेद “बिक रहा” के स्थान पर ” बिक रही ” सार्थक है
आभार आपका
सुन्दर रचना
धन्यवाद भावना जी
बिलकुल सही कहा आपने…शर्मनाक है सब ये….
धन्यवाद शर्माजी ,
आपकेद्वारा भेजी गयी पुस्तक मिल गयी है ,पूरा पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया लिखूंगा
Sundar rachna aur bhav..
धन्यवाद स्वाति जी