माँ जब से मैं मायके से आयी हूँ,शरीर तो यहाँ है मेरा पर मन वहीं छोड़ मैं आई हूँ।तेरे ममता की छांव में शीतलता ऐसी मिली है मुझको,चिंता की अग्नि शांत हुई,सारे दुख बिसराई हूँ।तेरे हाथ का खाना खाकर मन तृप्त हुआ मेरा,अमृतमयी स्वाद चख कर मैं आई हूँ।जिस घर में मेरा बीता था बचपन,उसी बचपन को फिर से मैं यादों में बसाकर लायी हूँ।पापा का प्यार से बातें करना, मेरे पसन्द की चीजें लाना,उनके इस अनमोल प्यार में,मैं सारी खुशियाँ पायी हूँ।भाई बहन के संग छेड़छाड़, वही प्यारी सी तू तू मैं मैं,उनके संग इन चंद पलों में, मै बचपन जी कर आई हूँ।वर्षों बाद मिलन हुआ बचपन की सखियों से,उनके संग फिर से मैं अपना बचपन दोहरा कर आई हूँ।मायके में बीते ये कुछ दिन दे रहें हैं नई ऊर्जा,जिससे मैं जीवन में फिर से नया जोश भर लायी हूँ।इन प्यारे प्यारे लम्हों को दिल में सँजोकर,ममतामयी जादू का पिटारा अपने साथ में लायी हूँ।।By:Dr Swati Guptahttps://youtu.be/Ai4YzbkkENQ
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Lovely expression of sentiments Dr. Swati……
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर्।।
बहुत अच्छा……
आपका बहुत आभार किस्कू जी।।
Sundar bhav , Dr Swati….
Thanks a lot Anu
मायके से जुडी भावनात्मक संवेदनाओ का अहसास कराती सुंदर अभिव्यक्ति ………..बहुत सुंदर स्वाति जी !
Thanks a lot Sir..
सही कहा आपने स्वाति जी। मायके से ससुराल आने के बाद सचमुच एक ऊर्जा का एहसास होता है। अपने अन्दर। बहुत ही खुबसूरत रचना।
Thanks a lot bhawna ji.
मैं क्यों लिखती हूं ।
सुशीला रोहिला सोनीपत हरियाणा ।
मै क्यों लिखती हूं । विसंगतियों है भयंकर
शिक्षा में स्वार्थ का भुकंप , समाज की नींव हिल ग ई ।
काया बीच रीढ़ स्तम्भ है , शिक्षा स्तम्भ समाज ।
लेखनी में मेरी है बल ।
शिक्षा के सौदागर राष्ट्र निर्माण करे कैसे ।
कहते कुछ करते कुछ शिक्षा करे मोल ।
नन्हे-नन्हे कोमल कलियो का खिलना कठिन।
जीवन -पथ के काटो में चल कर ही फूल खिला करते,
एक पुष्प को काटो में सोचकर ही खिलना पड़ता है ।
behad bhaavpooran……….
Thanks alot Sir.