बड़ा ही बेजान सा हूँ मैंदो देशों के बीच खड़ा हूँ मैंमैं हूँ सरहद का पत्थरचुपचाप सहता हूँ मैंगवाह हूँ मैं नफरत कादोनों तरफ के इंसानो कागश्त करती चालों कारक्त भरे जमानो कामैं गवाह हूँ अंहकार का तेरेतेरे तीर कमानों काऔर गवाह हूँ कटकर गिरीगर्दनों के शमशानों कामैं सालों से खड़ा अकेलाक्यूँ ये नफरत फैलाते होमैं किसी का नहीं हुआक्यूँ अपनी जान गवाते हो
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
सुन्दर कविता
Bahut sundar bhav and poem👍👍
Nice poem…
sundar………..
सत्य कहा आपने ………….अति सुंदर
खुबसूरत रचना