घर भरा रहता था, रिश्तेदारों से कभी,समय के साथ बदले मायने, दूर है सभी।लगे है भूलने रिश्तो की मर्यादा सब,निभाने की इन्हें फुर्सत भला कहाँ अब?अखरने लगा बड़ो का समझाना,कोन, किसकी चाहता है सुनना?अपने में रहे है आज सभी मस्त,जिसे देखो इस जहाँ में है व्यस्त।कहाँ रही है अब देखो शांति,पाल रखी सभी ने जो भ्रान्ति।खुद को समझे है ज्ञानी सब,औरो की सुने क्यों और कब?अनु महेश्वरीबेंगलुरु
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Sahi kaha aapne Anu..Very nice👍👍
Thank you, Dr. Swati…
सत्यपरक…यथार्थ…..चेतना जागृत करती…. आज जिसको देखो वो व्यस्त है… और ९० प्रतिशत बिना काम के व्यस्त हैं… रिश्ते तभी तो फल-फूल नहीं रहे…..
Thank you, Sharma ji…
Ekdam sateek Anu………………………..
Thank you,Shishir ji…
बहुत सही कहा है आपने .सुन्दर कविता
Thank you, Chandramohan ji…
बहुत खूबसूरत अनु जी. ……….आपका चिंतन सदैव यथार्थ से परिपूर्ण और तत्कालिक जीवन शैली पर होता है ………..!!
Thank you, Nivatiya ji…
बिलकुल सही कहा आपने सराहनीय रचना
Thank you, Bhawana ji…