मुहब्बत का हमने जाम ले लिया ,जुदाई इबादत का दाम ले लिया !!
वो खुश है अकेले हो हमसे जुदा ,तो हमने भी आखरी सलाम ले लिया !!
फरेबी मुहब्बत में वादाखिलाफी,न जानो कोई इंतकाम ले लिया !!
कही हो न जाए रुसवा मुहब्बत,अगर हमने उनका नाम ले लिया !!
कर उनसे मुहब्बत चैन है गवाया ,जागती रातो का पैगाम ले लिया !!
निले आसमां में नदारत है बादल ,यहा किसने अपना काम ले लिया !!
जी रहा हैं शशी आज भी मुस्कुराकर,न जाने क्यों ऐसा अंजाम ले लिया !!——————-//**–शशिकांत शांडिले, नागपुरभ्र.९९७५९९५४५०
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Very nice poem.
शुक्रिया स्वातीजी
किंतु शर्माजी के कहे नुसार बदलाव जरुरी है
बहुत ही सुन्दर रचना
शुक्रिया भावनाजी
किंतु शर्माजी के कहे नुसार बदलाव जरुरी है
बहुत सुंदर
शुक्रिया अनुजी
किंतु शर्माजी के कहे नुसार बदलाव जरुरी है ………
शशिकांत जी….सुन्दर भाव… …. शायद ‘इबादत’ लिखना चाहते थे आप…इबाबत नहीं… फिर भी मुझे सामंजस्य नहीं लगता “मुहब्बत का हमने जाम ले लिया ,जुदाई इबाबत का दाम ले लिया” में ….. ‘प्यारा सलाम’ की जगह ‘आखिरी सलाम’ पहली पंक्ति को कम्पलीट करता लगता है…
जी शर्माजी सही कहा आपने
इबादत ही लिखना था और आखरी सलाम भी अच्छा रहेगा
आपके अमूल्य मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार ,,,,,,
Kuch Sher acheche hai Shashi Kant. I agree with Babbu Ji’s observation.
धन्यवाद सर आपका
और मै भी सहमत हु शर्माजीकी प्रतिक्रिया से
किंतु यहा मै एडिट नही कर प् रहा हु
तथा यहाँ मै सुधार नही कर सकता …
आप सभी मान्यवरोंका आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिए बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हु
अति सुंदर शशिकांत……बब्बू जी के मत से सहमत हूँ ………..जाम के साथ दाम कुछ समझ नहीं आया …….काफिया मिलान के साथ साथ कहे ज रहे वक्तव्य के भावो का तालमेल भी सार्थक होना चाहिए !!
मुहब्बत का हमने जाम ले लिया ,
जुदाई इबाबत का दाम ले लिया !!
शुक्रिया निवातियाजी
मुहब्बत का अपने आप में एक नशा होता है उसी नशे को मुहब्बत के जाम का नाम दिया गया है
मुहब्बत की इबादत करते हुए मुहब्बत की जो कीमत (जुदाई) मिली है वही कीमत की जगह दाम शब्द उपयोग में लाया गया है
मुहब्बत के बदले जुदाई
मुहब्बत की गलियों में जो जुदाई का दर्द होता है वही भाव इस रचना में दर्शाने का प्रयास किया है