सप्ताह भर से भूखे पेट हूँ पेट की गड्ढे में आग जल रहा है धू-धू कर हुंह और बर्दास्त नहीं हो रहा है सर के ऊपर तक आग की लपटें उठ रहा है .पेट की गड्ढे को भरने जलती आग को बुझाने के लिए तुमसे कितना प्रार्थना किया एक मुट्ठी भोजन के लिए बार -बार गया तुम्हारे पास पर तुम बचा हुआ भोजन को अधखाया और जूठन को मुझे देने में तुम्हे नागवार लगा गन्दी नाली में बहा दिया कच्ची दूध को पत्थर की देवता की माथे पर डाल दिया मीठी -मीठी पकवानेदेवताओं को सौंप दिया शायद मन में विचार किया मैं तुम्हारे बराबर का नहीं हूँ दो पैरवाला जानवर हूँ इसलिए मेरा भूख से मुरझाना भूख से मर जाना तुम्हे आनंद दे रही है .
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
अगर ये पीड़ा आधे लोगों को भी जो व्यर्थ करते हैं खाने का सामान समझ आ जाए तो बहुतों का भला हो जाएगा….पर हम दिखावे की श्रद्धा और आडम्बर पसंद करते हैं…..’बुताने’ को बुझाने कर लीजिये….
ओके बुताने को बुझाने कर रहा हूँ .आपका बहुत धन्यवाद
बिलकुल सही कहा आपने सर। बहुत से लोग अपने लोभ और दिखावे के कारण खाना फेंक देते है। पर अगर वही खाना हम भुखे लोगो को नही देते ।यह बात सभी लोगों को समझ में आ जाए तो……बहुत ही खुबसूरत।
धन्यवाद भावना जी आपने मेरी रचनाएँ मन लगाकर पढ़ी और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दी
बहुत खूबसूरत किस्सू जी …………इतनी जागरूकता के पश्चात भी हमारा सभ्य समाज ऐसी बातो के प्रति सजग होने में असमर्थ नज़र आता है !!
काश कुछ लोग भी समझ सके तो मेरी कविता लिखता सार्थक समझूंगा .धन्यवाद आपका
आपकी कविता और विचार बहुत ही सुंदर हैं।kisku ji
Bahut sundar…