तुम्हारा प्यार पाकर पहाड़-पर्वतों के पेड़-पौधे अति सुन्दर ‘हरे’हुए है नदी भी अपनी चाल बदली है कल-कल गीत गाकर बहती जा रही है कोयल भी गा रही है घर की कबूतर भी गुटुर-गू कर रहे है तुम्हारा प्यार पाकर पेड़ की टहनी की फूल और अधिक सुन्दर हुआ है सुबह की शबनम हँस रही है और रात की चन्द्रमा को चुहुल सूझी है बच्चे की गालों को चूमकर पलभर में दूर आसमान को चढ़ रही है इसलिए शायद बच्चे भी मंद -मंद मुस्कुरा रहे है तुम्हारा प्यार पाकर तुम्हारा प्यार पाकर मैं भी फाल्गुन को उठाया हूँ अपनी गोद में फूलों की रंग से रंगा हूँ सुगंध और मीठी रस को कलम की स्याही बनायी हूँ जिससे अब मैंप्यार की कविता लिखने में लगा हूँ .
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अति उत्तम
आभार आपका माननीय
सही कहा आपने…जब मन में प्यार होता तो हर चीज़ सुहानी… गुनगुनाती लगती है
Dhanyavad mahashay
बहुत खूब किस्कु जी
Abhar aapka ….
बेहतरीन रचना सर।
आभार आपका माननीय
Very nice kavita.
धन्यवाद स्वाति जी
अच्छा सृजन ……………सकारात्मक भाव सदैव उत्तम कार्य के प्रेरक होते है ……………!!
धन्यवाद निवतिया जी
बहुत ही खुबसूरत रचना
आप सब मित्रों ने मेरी कविता को पसंद किया और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया भी दी .इसके लिए मैं सबको आभार व्यक्त करता हूँ .आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद
सभी सहयोगी कवियों को मेरा जोहार