सारा जहान तुझमें, तू क्यूँ भटक जाता हैखुले आसमान का पंछी क्यूँ अटक जाता हैकोई ख़ुशी बाहर नहीं है तुझसे चल संम्भल क्यों तू मचल जाता हैजोड़ एक से एक देख एक योग बनाटेक कदम एक एक यूँ न मोड़ बनाचलता चल पल पल चलने का ले मजाबेवफा आज से कल का मुकाम बनाखोद नींव गहरी की कल रोना न पड़ेबना बनाया मकान हाथ से खोना न पड़ेखड़ा है क्यों रख पहला पत्थर आज हीरखता चल जब तक सांस से सांस लड़ेपशीने की बूँद तेरी खुशबू पैदा करती हैअन्दर से मरे हुओं को फिर जिन्दा करती हैछोड़ आज को कल के नाम पर ,देखआज की कुर्बानी कल की मिसाल बनती है
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Very nice👍
Thanks mam
कर्म को बल देती रचना…. “बेवफा आज” शब्द उचित नहीं लगता जब कि सारी रचना आज पे आधारित है…अभी आज गुजरा ही नहीं रचना में तो बेवफा कैसे…..
सकारात्मक भावो से सजी सुंदर रचना !
बहुत सुन्दर