शीतल जल में कुछ हैमीठे से फल में कुछ हैकुछ है जो दिखता नहींखरीदूं पर बिकता नहींकुछ है जो डर मेंकुछ है भीतर मेंहै कुछ जो सिमटता नहींकुछ है जो बिखरता नहींकुछ स्पस्ट में कुछ धूमिल मेंकुछ निश्छल में कुछ अविरल मेंकुछ मिलता है ऊंचे गगन मेंकुछ छिपा पुलकित नयन मेंकुछ आईने में भी नहीं दिखता हैकुछ कोठरी में भी नहीं छुपता हैकुछ टूटकर भी नहीं झुकता हैकुछ बिना बेचे ही बिकता हैकुछ भूखी किलकारियों मेंकुछ हाथी की सवारियों मेंकुछ केसर की क्यारियों में कुछ उठती चिंगारियों मेंकुछ निर्मल कुछ कलुषितकुछ पुष्प कुछ कुपोषितकोई शिरोमणि है जग कारग रग जिससे है सुशोभित
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Bahut hi badiya rachna👍👍
Very nice…
bahut khub
सुन्दर रचना है सर
bahut sundar…………..
बहुत खूबसूरत ……………अन्य हम सभी साथियो की रचनाओं को भी नजर करे और अपने विचार साझा करे !
Good work……..
सुंदर रचना और रचनाकार को सादर नमन।अपने भीतर के जगत की यात्रा में सम्मिलित कराने का सादर आभार।
AABHAR AAP SABHI KA