कायाकल्पित किंगरों से अब युद्ध नहीं होगा दूध और फूल चढाकर शिव अभिषेक नहीं होगा ना कोई समभाव प्रबलकोई कबूतर सफ़ेद नहीं होगा ना मंजूर अत्याचार दखल कोई मतभेद नहीं होगा जब होगा तांडव प्रखर पर्वत भी थर थर कापेंगेबेशक रंगबदल नतमस्तक जीवन की भीख मांगेगे बर्फ की शिलाओं से जब शोले रण में बरसेंगे अपनी माँ की छाती को लाल तुम्हारे तरसेंगे जब मग्न महादेव कीत्रिज्योति खुल जाएगीआहत होगी धरती भी मौत तुम्हारी आयेगी दोहन होगा पुण्यभूमि पर फिर इतिहास दोहराया जायेगा मातृभूमि को झुकाने वाला हर गिरगिट मारा जायेगा
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sahi farmaya janav
उत्कृष्ट विचार
जोशपूर्ण भावों से भरी…उम्दा रचना ….पर मुझे इन दो पंक्तियों का औचित्य समझ नहीं आया “अपनी माँ की छाती को लाल तुम्हारे तरसेंगे” इसका सामंजस्य आस पास की पंक्तियों से मुझे बैठता नहीं लगता….हो सकता मैं समझ न पा रहा हूँ वो जो कहना चाहते आप……..
बिल्कुल सही कहा
ओज़ से परिपूर्ण सुंदर रचना …………..!
Very nice. Full of patriotism and suggesting the need of the hour……
Bahut aabhar aap sabhi ka