मैं मजदूर हूँ पर मजबूर नही खाता हूँ अपनी खून पसीने की कमाई इसलिए मुझे कोई शरम नही। खा कर सुखी रोटी फुटपाथ पर चैन की नींद सोता हूँ। मिट्टी से सोना उपजाता हूँ ताजमहल और हवामहल भी मैं ही बनाता हूँ। सुरज की किरणों में अपने तन मन को झुलसा कर तिनका तिनका जोड़कर तेरा शीशमहल भी बनाता हूँ ।माना हमारे जीवन में एश और आराम नहीं पर पुरा करता हूँ अमीरों का सपना बहा कर अपना खून पसीना। माना तुम मालिक में हूँ Naukarकहने को एक छोटा लेबर।मेरा भी सम्मान है अपना तेरे सर पर मेरे तन का खून पसीने का उधार बहुत है। तुच्छ न समझना तुम हमे हमसे ही तेरा शीशमहल है। मैं तो हूँ गुरुर अपने देश का चाहे हूँ अनपढ़ या पढ़ा लिखा हूँ मजदूर पर मजबूर नही में ।
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भावना जी बधाई रचनात्मक कार्य में कार्यरत रहने की शुभकामनाएं! [email protected]
बहुत बहुत धन्यवाद सर
गरुर को गुरुर पढ़े। गलती से गरुर type हो गया है
bahut hi sundar rachna…………..
धन्यवाद सर
सत्य कहा आपने ……….अति सुंदर …………….इस विषय पर प्रत्येक व्यक्ति को आत्म चिंतन करे की आवश्यकता है !!
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Very nice and true👍👍
बहुत बहुत शुक्रिया
Bahut Sundar rachna…..
बहुत बहुत आभार
bahut sunder lubhawani rachna……. bilkul sahi …..
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Bahur Sundar..
धन्यवाद।