याद है तुम्हे कब माँ के साथ बहुत प्यार के साथ मुलाकात किया था जीवन की चढ़ाई-उतराईदुःख और कष्टों को सुलझाने के लिए अनुभवी पिता के पास गये हो कब कब अपनी पत्नी की मुस्कान मन लगाकर देखे हो भाभी माँ की निस्वार्थ प्यार को कब अनुभव किये हो कब तारों से आसमान से चन्द्रमा तुम्हारी आँखों की आँगन में आई थी कब सुबह जागने के साथ बेटी की फूल जैसी चेहरा देखे हो और वह स्मरण कर पुरे दिन आनंद के साथ विताये हो मोबाइल और कंप्यूटर की रंगीन दुनिया में तुम्हे होश नहीं है सत्य खो जाने की .
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बहुत खूबसूरत ……………..चंद्रमोहन जी !
Abhar aapka
बहुत खूबसूरत चंद्रमोहन जी।कंप्यूटर के युग मे भावनाओं का क्षय होता जा रहा है। आत्मीयता का पतन दिखाई दे रहा है। आपका अनुभव स्वाभाविक और सत्य है।
आभार आपका देवेंद्र जी
बहुत ही सुन्दर रचना
Dhanyavad bhawana ji
Bahut hi badiya 👍👍
Dhanyavad swati ji
सही कहा आपने….रिश्ते मायने खोते जा रहे हैं…..प्यार मशीनों से रह गया है….झकझोरती रचना….
धन्यवाद शर्माजी
satya vachan bahut khoob….
आभार आपका शर्मा जी