दिन भरगलियों में घूमेंगेतेरी याद की गठरी लेकर…रात रात भरकरवट बदलता रहूँगातेरे इंतजार की तपिश सह कर …हर सुबह तकता रहूँगा दरवाजे कोकलश में चावल डाल कर …हर रोजपता मांगूंगा तुम्हारा रब सेहाथों में तेरी तस्वीर ले कर …हर सुबहबनाता रहूँगा चाय तुम्हारे लिए भीपीता रहूँगा ठंडी कर…कभी पेड़ की छाल परकभी पत्थर की दीवार परलिखता रहूँगा नाम तेराअपने खून की स्याही बना कर… अभिषेक राजहंस
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सुन्दर अभिव्यक्ति। बहुत खुब।
सुंदर प्यार की प्रस्तुति
Nice…
वाह अभिषेक जी ।सुंदर रचना।