जाने तुम घर कब आओगेमेरी दिल की प्यास बुझाओगेबाहों में लेकर के मुझकोकब अपना प्यार जताओगेजाने तुम घर कब आओगेआँखों मे नीद न आती हैजब याद तेरी आ जातीयूं दूर दूर रह करके तुमजाने कब तक तड़पाओगेजाने तुम घर कब आओगेअब दूरी सही न जाये पियारह रह के मेरा धड़के जियाकब छोड़ छाड़ सब काम तेरेनयनो से बाण चलाओगेजाने तुम घर कब आओगेमैं मीरा सी दीवानी हूँकृष्णा की प्रेम कहानी हूँकब तक तरसूँ मैं बिरहन सीदर्शन कब तक दे जाओगेजाने तुम घर कब आओगेआभारकृष्णा
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अति सुन्दर….आप लिख के दो-चार बार पढ़ा करो… उस से आपको अपनी ही रचना में और सामंजस्य बैठाने की आदत पड़ेगी….बहुत अच्छे भाव हैं… हाँ लिखना छोड़ना नहीं है…मेरी बात बुरी लगे तो माननी नहीं…हाहाहा
बंधुवर आप श्रेष्ठ है आपकी आज्ञा शिरोधार्य
sundar rachna…
धन्यवाद अनु जी
सुन्दर रचना
शुक्रिया भावना जी
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ………………बब्बू जी व् अन्य गुणीजनों के विचारो पर गौर करेंगे अवश्य लाभान्वित होंगे !
धन्यवाद मान्यवर अवश्य विचार करेंगे
Nice efffort. I agree with Babbu Ji. Improvements come with time.
I’m your big fan