गरीब जहाँ था, वहीं खड़ा हैशोषण कर रहा, वही बड़ा है। जिसने भी आवाज उठाई जान भी देने को, अड़ा है। फिर गरीब किसान ही मरतामजदूर क्या-क्या न करता। बे कसूर है, सो मर जातासीने में गोली है खाता। मसीहा कौन बनेगा इनका नेता का दिमाग है खिसका। लोग सरकारी , बड़े निरालेकुछ उजले हैं, फिर कुछ काले। कुछ नेता, अपराधी बन गएदबंग चोर, सिपाही बन गए। नटबरलाल, कुछ बैंक उजाड़े नेता बने, तिजोरी झाड़े। मन मानी, करते हैं ऐसा लोकतंत्र भी, है यह कैसा। राहत जो मिलती है इनको पहुँच नहीं पाता है पैसा। जो अच्छे हैं, करते अच्छेकुछ तो हैं, इनमें भी सच्चे। है संघर्ष, जीवन ही सबका साथ रहे, विकास हो सबका।
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सही कहा आपने सर। सराहनीय रचना।
Bahut Sundar…
गरीबों की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति की सुंदर अभिव्यक्ति ।
nice article
stay…..steek………
मानविय सवेदना को टटोलता खूबसूरत चिंतन !
बहुत सुंदर गंभीरता से रची…… रचना बहुत खूब…..