मेरी नज़रों से तुम अब अपनी नज़रें ना मिलाते हो कली ही नोच देते हो कभी गुल ना खिलाते होकभी सुख देने की खातिर भरा था चेहरा हाथों मेंआज मैं कितना भी चाह लूँ गोद में ना सुलाते होकभी भी दूरियां ना हों यही तुम कह के डरते थेआज खुद दूर रहते हो कसम भी ना खिलाते होकभी बाहों में सिमटे थे दूरियां छोड़ कर सारीआज कैसी भी अड़चन हो मुझे पर ना बुलाते होकभी बातें हुईं इतनी आँखें भर आईं थी मधुकर अब तो जज्बात कह मन के कभी भी ना रुलाते होशिशिर मधुकर
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बहुत खूबसूरत……”कभी भी दूरियां ना हों यही तुम कह के डरते थे”….. मुझे लगता ये ऐसे होना चाहिए “कभी भी दूरियां हों हम में ये तुम कहते ही डरते थे”….और अगले शेर में दूरियां की जगह दुनियां छोड़ कर शायद लिखना था आपने…
Tahe dil se shukriya Babbu Ji. Ghazal ko gaane ke hisaab se hi maine shabdon kaa chayan kiya hai. Aapke mahatvpoorn sujhavon par haalanki main awashya chintan karunga.
Bahut Sundar, Shishir ji…
Tahe dil se shukriya Priy Anu ……
थोड़ी मेहनत से बहुत सुन्दर गजल बनती है
Shukriya Bindu Ji……..
बहुत ही सुन्दर गज़ल
Tahe dil se shukriya Bhavna Ji …………..
सुंदर रचना सर । सब हमारे चाहे अनुसार नही होता है। नियति का सामना तो करना ही पड़ता है।
Appne sahi kaha Devendra. rachnaa padhne or saraahne ke lie shukriya.
बहुत खूबसूरत शिशिर जी……………………!!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……………..
BHUT KHOOBSOORAT SIR
Tahe dil se shukriya Anjali …………..
Wha Sir
Dhanyavaad Rakesh Ji ………………
sir aapki rachna ko padhkar rona aa gya…..aisa lga ki ye shayad mere upr likhi hui hai