हम में ही चोर डाकू कोई बेईमान हैअलग अलग कर्मो से अलग अलग ही पहचान है। छुपा हुआ नाकाब पोश कोई अत्याचारी है बेखौफ घूम रहे सनकी कोई बलात्कारी है। आँख में लज्जा कहाँ, मन बेईमान हो गया वरी हो गये अपराधी, सब हैरान हो गया। अपराधी बेखौफ घूमकर, मजे लेते हैं जज और वकील लड़कर भी, पैसै लेते हैं। ये जूल्म को झुठलाने के लिए ही लड़ते हैं सत्य बेचारा आज, रो रोकर ही मरते हैं। मिडिया तील का ताड़ करती है, चिल्लाती है पुलिस थाने लापरवाह होकर, रौब दिखाती है। दारु बंद, पर डर किसको, बेचो दारू, दो घूस एक देश को लूटता, एक सीमा पर मरकर खूश। करोड़पति, वाह रे एस एस पी विवेक कुमार ऐसे – ऐसे बहुतों हैं हमारे बीच खुंखार। मरौअत करने वाले, इनको जड़ से खतम करो पेट एक बार खराब होगा इनको, हजम करो।
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सत्य वचन बिंदु जी ……….वर्तमान हालातो पर सटीक चिंतन
बिलकुल सही कहा आपने सर।
सही आकलन……..
Very true….
Sahi kataksh. Saamaajik patan par peeda bhi jhalakti hai……