मैं भी लिखती हूँ कुछ मन में आए विचारो को कलम की ताकत बनाकर ।मंजिल मेरी कहा है बस उसका हमें पता चाहिए। खुद ही रास्ते पर चली आऊंगी बस “‘निवातिया’,’मधुकर’,’बिन्दु’,मधु,’मनी’,’अभि’जी “सा कोई राह numa चाहिए। 2) बहुत बुनी हूँ मैं ताना बाना हृदय भी व्यथित हो गया है बहुत थकी हूँ भटकी हूँ मैं टूट चुकी हूँ मैं पूरी तरह से। राह की हर कठिनाई पार कर अब “‘अंजलि ‘,’बब्बू ‘,’अरूण’, ‘किरण’,’कपिल ‘,’विमल’,’सोनी’जी ” जैसे श्रेष्ठजन का साथ मिला है।
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भावना जी आपकी भावनाओं को नमन,बहुत सुंदर लिखती हैं आप साहित्य के पथ पर अग्रसर हैं। साहित्य सेवा हम सभी का धर्म है अगर ईश्वर ने हमें कलम की ताकत दी है तो उन्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए ।आपकी भावनाओं का पुनः आभार…..
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
भावना जी…हम सब साहित्य परिवार के सदस्य एक दूसरे को बेशक व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते…पर इस मंच के माध्यम से जुड़े हैं…और एक दूसरे की भावनाओं की कदर करते हैं…आपस में प्यार है…सौहार्द पूर्ण वातावरण है…जिसको आपने बाखूबी अपनी रचना में उदृत किया है…जैसा की आपने लिखा है…हम सब एक दूसरे के साथी हैं…और एक दूसरे से ही सीख रहे हैं….. तहदिल आभार आपके भावों का…नमन…. जय हो…
तहे दिल से शुक्रिया आपका
Nice….
बहुत बहुत धन्यवाद।
भावना जी आपके ह्रदय के भावो के हम आभारी है, यकीनन ये पूरा साहित्य समूह एक परिवार है, हम सब यहां एक दूजे के इतने निकट है जितने सादृश्य रूप में नहीं हो सकते क्योकि रचनाओं के माधयम से हम एक आपसी विचारो के आदान प्रदान से परस्पर कुछ न कुछ एक दूजे से ग्रहण करते है ! और जैसा कि कुछ नामो का आपने जिक्र किया वास्तव में सब एक दूजे के बहुत करीब है ……. सबको इंतज़ार रहता है एक दूजे कि रचनाओं का ……….!!
आप अपने पथ पर यूँ ही चलते रहिये मंजिल आपके बहुत करीब है ……हम सदैव आपके साथ है !
पुन: धन्यवाद एवं आभार आपका …….!!
बहुत बहुत शुक्रिया और आभार आपका इस रचना को पढ़कर मुझे समर्थन करने और प्रोत्साहित करने के लिए। धन्यवाद सर।
Waah Bhaavna Ji. Saahityik parivaar ko aapne badi sundrata se ek sootr be baandh diya hai.
बहुत बहुत धन्यवाद सर।