आज भी बातों से उनकी फूल झरते हैंदिल से जुदा होते नहीं जो प्रेम करते हैं ढल गई है रात देखो दिन निकलने को रोशनी से इसमें चलो फिर रंग भरते हैंतेरी गली से हो के जब भी हम गुजरते हैंमन ही मन ए जानेमन इतना संवरते हैंजैसे भ्रमर को पास में अपने बुलाने को बाग के ये महके गुल हरदम निखरते हैंशिशिर मधुकर
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बहुत ही खुबसूरत रचना है सर
Tahe dil se shukriya Bhavna Ji ………
बहुत खूबसूरत रचना है आपकी शिशिर सर
Tahe dil se shukriya aadrneey Madhu Ji ……..
वाह…..बेहद प्यारी प्यार की सुगंध बिखेरती रचना…पहले पद की अंतिम पंक्ति ऐसे हो तो कैसी लगती….
लिए अरुण लालिमा चलो फिर रंग भरते हैं…
Tahe dil se shukriya Babbu Ji. Aapka sujhaav bhi bahut sundar hai.
Bahut hi khubsurat rachna, Shishir ji…
Tahe dil se shukriya priy Anu……….
अप्रितम शिशिर जी ………….
ढल गई है रात देखो दिन निकलने को
रोशनी से इसमें चलो फिर रंग भरते हैं
Tahe dil se shukriyaa Nivatiya Ji ……..
“दिल से जुदा होते नहीं जो प्रेम करते हैं”। प्रेम वो एहसास है जो अनुभव कराता है कि आप अपने प्रियतम से अभिन्न है। सुंदर पंक्तियाँ सर ।
Tahe dil se shukriya Devendra ……………..