क्या करें
यह दिल बेचैन हुआ जाता है क्या करें
वो अहसास दिल को छुआ जाता है क्या करें
हमने दिल के जज्बात रख दिए अल्फाजों में
वो इसे शायर की शायरी ही समझे तो क्या करें
जिन्हें समझा हमनें दिल के करीब
वो हमें दोस्त भी न समझे तो क्या करें
वैसे तो वो संजीदा बहुत हैं मगर
मेरी संजीदगी को ना समझे तो क्या करें
हर मुस्कान पर उनकी जान छिडकते हैं
यकीन फिर भी उन्हें नहीं आता क्या करें
उनकी तस्वीर को देखके भी सुकुन मिलता है
वो इसे ही छीनकर ले जाए तो क्या करें
ये जज्बात दिल के यूं कागज पर उभरते हैं
वो इन्हें पढना भी ना चाहे तो क्या करें
रामगोपाल सांखला ‘गोपी’
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बहुत सुंदर
बहुत बहुत आभार मुक्ता जी
अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार बिन्दू जी
बहतु अच्छे राम गोपाल जी ……
बिछाकर पलकें राहो में खुद को मिटा लिया
फिर भी कोई अपना ना समझे तो क्या करे !!
रचना शीर्षक ” ज़रा खुलने तो दो ” को नज़र करे
निवतियाजी, इतनी सुन्दर हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया।
Bas kya karen ki hi samasya hai Ram Gopal Ji. Kinkartavyvimoodhtaa ki sundra abhivyakti…….
Madhukar Sir,
Thanks.
बहुत ही सुन्दर रचना
Thanks Bhawana JI
बहुत बढ़िया गीत लिखा आपने गोपी जी
Thanks Madhuji
Thanks Madhu ji
आप कुछ मत कीजिये….बस ऐसी सुन्दर सुन्दर रचनाएं लिखें…हाहाहा
CM Sir,
Thanks
Bahut Sundar…
Anu Ji.
Thanks