शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं,व्यापार बना अब डाला है।मंदिर कहलाता था विद्यालय,अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है।व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ,संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे।रटने की पद्धति का जमाना है,नवाचार कैसे कर पायेंगे।साधन नहीं बढ़कर जीवनमूल्य से,सिखलाने वाला गुरु अब रहा नहीं।माँ भी दूसरों से जीतना सिखाती है अब,स्वयं से कैसे जीतें बतलाने वाला कोई मिला नहीं।मनुष्य जीवन हो जायेगा नष्ट,जाकर महापुरुषों से ही कुछ सीख लो।मानवता से बड़ा नहीं कोई धर्म जग में,जीवन मिला परमार्थ को महत्व अब समझ लो ।कवियित्री -आस्था गंगवार ©
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सुंदर अभिव्यक्ति ……….!!
धन्यवाद आपका
Sundar or shai vichaar…….
बहुत आभार रचना की गहराई को समझने के लिए
खुबसूरत। सही कहा आपने
बहुत शुक्रिया आपका
सही कहा आपने सुंदर रचना आपकी
सुन्दर तो आपकी दृष्टि है इसलिए रचना सुन्दर लगी बहुत धन्यवाद आपका
sundar…………..
धन्यवाद