जवाब सीधा है सरल हैपीछे कई कठिन सवाल हैक्षणिक जो भी हैएक लंबा संघर्ष है अंतराल हैमुस्कुराहटें जो प्रतिमान हैंदिव्यता की पहचान हैंअंतस में समेटे हैंपीड़ा के कई महासिंधुयूँ ही नही है ज्योतिर्मय मधुमय मुख-बिंदु।देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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बहुत सुंदर रचना आपकी………………
बहुत ही सुंदर कृति… अच्छी सोच
विनीतजी…बहुत बढ़िया लिखा है आपने….पर आप जो कभी कभी तुक मिलान करते हैं मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता सही नहीं है….मेरे हिसाब से तुकमिलान उसमें करना चाहिये जिसमें मतलब उलट न निकले एक प्रवाह में चलते… आपने लिखा है….
अंतस में समेटे हैं
पीड़ा के कई महासिंधु
यूँ ही नही है ज्योतिर्मयी
मधुमय मुखारबिंदु।
“मुखारबिंदु” का संधि विच्छेद करें तो आप को “मुख(मुंह) +आर (अशुद्ध लोहा, पीतल, या स्त्री हठ+बिंदु(चिन्ह) “… या संधि विच्छेद ले सकते रचना में जो मुझे लगता नहीं बनता…मुख़ार + बिंदु…मुखर से मुख़ार…मुखर मतलब वाक्पटु या वाचाल होना या एक दुसरे को आमने सामने अपने को वार्तालाप में सम्मिलित करना…जब की “मुखारविंद” कमल के समान होता है जिसको आपने मुखारबिंदु किया है… कृपया मेरी धृष्टता के लिए क्षमा कीजिये….
बहुत ही सुन्दर रचना है सर।
Lovely work Devendra. Babbu ji’s Suggestions above seem to be important.
धन्यवाद सर। निश्चित रूप से त्रुटिपूर्ण है। व्याकरण का उचित ज्ञान न होने के कारण त्रुटियां परिलक्षित हुई है। मार्गदर्शन के लिए पुनः आभार। साहित्य सेवा तभी सार्थक है जब वह शुद्धतम हो।