बेशक मुझे दो अपने इश्क़ का नज़रानामगर चाहिए उसमे इश्क़ नजर आनाभरी महफ़िल में कैसे ना कर देतेअमानत तुम्हारी खुद आकर देतेलौट जा,और देर यहां रह मतनही इस दर पर खुदा की रहमत देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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Gambheer soch……
विनीतजी…. ‘शीबों’ … ‘आँखों से पूछिए जो बे शब अब है’ का आशय…मतलब नहीं समझ पाया मैंने…मुआफी चाहता हूँ….
शीबों नाम है। आशय यह है कि किसी की तरक्की को देखकर मन मे हीन भावना नही आनी चाहिए क्योंकि ईश्वर ने निश्चय ही आपके लिए कुछ अच्छा सोच रखा है। सच है, वो जो तेरे नसीबों में हैं न रुखसार में है न शीबों में है। शब का अर्थ है रात। बे शब अब का आशय है बिना रात के। आंखों से पूछिए जो बेशब अब है।तात्पर्य कई रातों से जागने का है।
विनीतजी….’शीबों’ नाम है तो स्पष्ट नहीं होता रचना में…तुक मिलान में जिसके लिए आपने प्रयोग किया है… आपके ‘बे शब्’ का प्रयोग भी मेरी समझ से बाहर है…. क्यूंकि शब् आँखों की नहीं होती…आँखों में नींद होती है…. और नींद रात को ही आती हो ज़रूरी नहीं है… दूसरा शब् के साथ ‘बे’ प्रयोग नहीं होता यहाँ तक मेरी जानकारी है… अगर आपके पास जानकारी है तो सांझा कीजियेगा… और अनुचित मत लीजिये… विचारों के आदान प्रदान से हम एक दूसरे से सीखते हैं…. आप अपनी जानकारी सांझा करेंगे तो मुझे फ़ायदा होगा….
सादर धन्यवाद सर।निश्चय ही त्रुटिपूर्ण है।मैं सुधार करने का प्रयत्न करता हूँ।