अधूरे से दिखे मुझको तुम्हें कल शाम को देखाबिना सिय के तड़पते जैसे अकेले राम को देखासभी गोपी कृष्ण को घेर कर उल्लास करती थीमगर राधा के बिन मैंने तन्हा घनश्याम को देखाउमंगे देख कर मेरी वो फूले ना समाते थेसफ़र में साथ मैं आई जब तेरे नाम को देखा नशे की लत लगी जिसको उसे अब दोष क्या देनासुकूं पाने की खातिर उसने हरदम जाम को देखाबात कुछ भी नहीं होती मगर नज़रें तो मिलती हैंमैंने तो हर दफा उनमें छुपे पैग़ाम को देखा हर इक शुरुआत अच्छी थी मगर रस्ते नहीं सूझेआज टूटी सी रहती हूँ जब से अंजाम को देखा शिशिर मधुकर
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
बहुत खूबसूरत रचना।अर्द्धांश के वियोग और प्रेम का अद्भुत निरूपण। सादर नमन सर।
Tahe dil se shukriya Devendra ……………
बहुत खूबसूरत ……….पहले प्रेम, फिर वियोग, तदोपरांत मिलान की सुखद अनुभूति का अहसास निश्चय ही अपरिकल्पनीय है ………….अतिसुंदर शिशिर जी !
Tahe dil se shukriya NIvatiya Ji …………………….
bahut hi umda madhukar sahab bahut achhi anubhuti……..
Tahe dil se shukriya BIndu Ji ……………….
Bahut khubsurat, Shishir ji….
Tahe dil se shukriya Anu ………………….
behad khoobsoorat…………..
Tahe dil seshukriya Babbu Ji ……………..
अत्यंत सुन्दर.
Dhanyavaad Vijay…………..