वो जगह बताओ मुझे तुम जहाँ रहते होमंदिरो-मस्जिद में भी तुम कहाँ रहते हो।साया ना कहीं दिखा धूप में चलते रहेआग लगा रखी थी तुमने जहाँ रहते हो।मैं ख्वाब के पर्दे रात भर हटाता रहादेखा पसेपर्दा भी तुम कहाँ रहते हो।हल्का नशा था, मगर लहू खौल उठता थाजब कभी साकी पूछता ‘तुम कहाँ रहते हो’।क्या मालूम कि मेरा दिल अब कहाँ रहता हैअब तो वहीं रहता है तुम जहाँ रहते हो।हमसे यूँ जुदा होकर तुम कहाँ रहते होवो महफिल बता दो तुम जहाँ रहते हो।तुम्हारी ही यादों में अब मैं डूब गया हूँअब मुझे वहीं बुलालो तुम जहाँ रहते हो।….. भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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रूहानी
बहुत खूबसूरत ……………..वैराग्य से परिपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ……………!!
बेहद खूबसूरती से तड़प को शब्द दिए हैं….