हो रही है पराजित ये अपराजिता,जल रही है इसके अरमानो की चिता,हर दर्द जीतने को बेताब हो रहा है,हर सपना जैसे ख्वाब हो रहा है, मुस्कान होठों से दूर हो गई है, हर खुशी ग़म के आगे मजबूर हो गई है,करके अर्पण खुद को कहलाएगी “अर्पिता”,बह उठेगी एक रोज विचारों की सरिता,तब होगा इस पर संसार “गर्विता”और फिर से जीत जाएगी “अपराजिता”सीमा वर्मा”अपराजिता”
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सुन्दर रचना
बहुत खूबसूरत !!
Simply great……….
mayushi aur dard ki byan ….. bahut sunder…
विनीतजी…मुझे नहीं पता आपके पास सीमाजी का Id और पासवर्ड कैसे है….मेरा सोचना है की आप अपनी Id के अंतर्गत उनकी रचना पब्लिश करें सादर उनके नाम से तो ज्यादा बेहतर है…. दूसरे किसी भी व्यक्ति की रचना जो इस संसार में है या नहीं है ऐसे पब्लिश करना एक लेखक की नैतिकता के लिए सही नहीं लगता मुझे….
बहुत ही खुबसूरत रचना