जब उसने जन्म लिया,माँ ने एक प्यारा सा नाम दिया। ज्योंहि व बड़ी हुई,दुनिया वालो ने उसे गुमनाम किया। वह कभी मायका बनी,कभी घर बनी। कभी भाई बनी,कभी बहन बनी कभी बिस्तर बनी,कभी रोटी बनी। तो बनी कभी कपड़ा भी। पति के लिए वृक्ष की छाल बनी। बच्चो के लिये पलना बनी। पोते पोती के लिए खुद व बच्ची बनी ।इसी तरह वह गुमनाम होती रही। कभी वह आँगन बनी ,कभी नदी बनी। पहाड़ बनी,परवत बनी। और न जाने व,क्या क्या बनी। और जब वह मरित्यु की सैया सोई ,तो भी वह गुमनाम ही रही ।किसी ने उसे रामप्यारे की पत्नी कहा, किसी ने सोहन प्यारे की बहु कहा।किसी ने चिंटु की माँ कहा तो किसी ने बंटी की दादी कहा । और इस तरह से ,फिर वह गुमनाम हो गई। और किसी ने भी,उसका वह प्यारा-सा नाम नही बतलाया। जो जन्म के बाद,उसकी माँ ने उसे दिया था। और इस तरह से वह सदा सदा के लिए ,गुमनाम हो गई।
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बहुत सुंदर रचना….
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना .आपने कविता के माध्यम से पूरी नारी जाती की और अपनी भी पीड़ा को दर्शाया है .
बहुत बहुत शुक्रिया।
बहुत सुंदर भावना जी …….मूल यथार्थ को छूकर आपने ह्रदय को खुशकर दिया …..!!
वरन यदि सकारात्मक रूप में देखे तो हमे इसमें भी उसका सम्मान ही छुपा नज़र आता है …….ये नारी की महानता को दर्शाता है की उसको कितनी उपाधियों से नवाजा गया ……..दरअसल एक नारी इतनो की पहचान बन जाती है की उसके लिए सम्बोधन के अमिट पर्याय जीवंत हो जाते है ! …इसमें उसकी पहचान खो नहीं जाती ….. बल्कि पहचान का दायरा बढ़ जाता है !
बहुत बहुत धन्यवाद सर हमारी रचना पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिए। आप लोग ऐसे ही हमें सुझाव देते रहे तो मैं प्रयास करुगी कुछ और भी अच्छा लिख सकूँ।
बेहद खूबसूरत……..मैं भी निवतियाजी की बात से सहमत हूँ….एक सिर्फ औरत ही है जिसका नाम…रूप… गुण… किसी न किसी रूप में अंश में सब में समाहित हैं…मैं उन गिरे हुए लोगों की सोच की बात नहीं कर रहा जो औरत को जूती समझते हैं…ऐसे हैं लोग अभी भी…मैं उस भाव से बात कर रहा हूँ… माँ के रूप में भगवान् साक्षात हैं ज़मीं पर…पत्नी के रूप में लक्ष्मी सहभागिता है हर पल में…बेटी के रूप में वह रूह को पवित्र करती है…
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
Stri vimarsh kaa ek mahatv poorn drastikon.
बहुत बहुत शुक्रिया सर हमारी रचना पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिए
bahut khub …… sunder tarike se aapne likha ….. maa ki bhakt ban gai…..
बहुत बहुत धन्यवाद सर