मुहब्बत ग़र समझता वो तो यूँ रूठा नहीं होता अलि के चूम लेने से फूल झूठा नहीं होता ना संग जाएगा कुछ तेरे ना संग जाएगा कुछ मेरे समझता बात ये ग़र वो साथ छूटा नहीं होता आईने की छवि घर को कभी रुसवा नहीं करती तेरा पत्थर ना लगता तो कांच टूटा नहीं होता दोष सब देते हैं मुझको मगर सच भी तो पहचानो चमक होती ना हीरे में तो फिर लूटा नहीं होता प्यार को कह नहीं सकते ये तो महसूस होता है अलग आवाज़ देता है घट जो फूटा नहीं होता ज़मीं को छोड़ कर ये बीज ग़र सूरज को ना तकता साथ पत्तों के बगिया में शिशिर बूटा नहीं होता शिशिर मधुकर
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Very nice, Shishir ji…
So very nice of you Anu………………..
अद्भुत रचना सर । सुखद अनुभूति और बहुत कुछ नया सीखने को मिला। सादर प्रणाम।।।
Devendra aapke anmol shabdon ke lie tahe dil se shukriya………………….
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
Haardik aabhaar Bhavna Ji ……………………
बहुत सुंदर रचना शिशिर जी बहुत बढ़िया….
Tahe dil se shukriya Madhu Ji …………………
BAHUT SAHI SARTHAK………
Dhanyavaaad Bindu Ji ………………
बहुत सटीक एवं प्रभावशाली विचारो का संगम …………..अति सुंदर शिशिर जी !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……………………
behad umda………laajwaab………..
Tahe dil se shukriya Babbu ji ………
Bahut khoobsoorat. Rachna
Tahe dil se shukriya aadrneey Kiran Ji ……….