सतयुग आयु लाख बरस, त्रितायू दस हजार द्वापर घट हजार भये, कलियुग सौ में भार। करो जितना करना है, ये काया है कांच जाने कब चटक जाये, मानो बिलकुल सांच । कलियुग में श्री राम का, भजन रहेगा सार छल – कपट से दूर रहो, होगा नैया पार।
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bahut khoobsoorat……….
बहुत ही सुन्दर
Well said……………
बहुत खूबसूरत बिंदु जी…..उत्तम विचार आपके ………….निम्न सा सुझाव है …….प्रथम दोहे के प्रथम पद के प्रथम चरण के अंत में दीर्घ मात्रा होनी चाहिए ……..लघु नहीं !!
gahrai se padhne ke liye bahut bahut sukriya……. hamne use thik kar diya hai…….apke khyal bahut hi sunder.
Shriman jee ismen thodi aapki madad chahiye….. kyonki thik karne ke baad hamen thik nahi lag raha hai…… kripaya disha nirdesh deyn.
भावो को मान देने के लिए धन्यवाद बिंदु जी …..वैसे तो हम भी आप ही कि तरह नौसिखिये है लेकिन …..आप चाहे तो इस प्रकार भी लिख सकते है ………..
सतयुग उम्र लख बतायो, त्रेतायू दस हजार
द्वापर घट हजार भये, कलियुग सौ में भार।!
निवतिया साहब… पद की अंतिम बारह मात्रा पर टूटती है… ब्याकरण की दृष्टि से ये गलत है। अब हमनें एक ख्याल के तहत उसे ठीक किया है। इसपर अपनी प्रतिक्रिया दें। धन्यवाद।
बिंदु जी जरा ध्यान से देखिये मात्रा १३ ही बनती है शायद …………
१ १ १ १ १ १ १ १ १ २ २
सतयुग उम्र लख बतायो,