दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल हैख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती हैअपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगाकोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती हैकिसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता हैबिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती हैक्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत सेदशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती हैदिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा हैपत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती हैभरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें”मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती हैक्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत सेमदन मोहन सक्सेना
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बढ़िया गजल आपका …….खूबसूरत……
मेरी रचना …कविता है… भी पढ़ें…
बहुत सुन्दर गजल