पिला ऐसी कि हर पैमाना मैखाना लगेपिला इतनी कि मैखाना इक पैमाना लगे।बैठ तेरे आगोश में ताउम्र ऐ साकीजिन्दगी हर सूरत अक्स-ए-मैखाना1 लगे।वक्त अब क्यूँ इस तरह खुद-इंतशारी2 का होदर्द हो भी तो गमे-दिल3 का दीवाना लगे।सिर्फ छूकर ही जाम तिरा नशा आने लगाहरेक बूँद अब इक छलकता पैमाना लगे।मुश्किल अब मैखाने से उठ घर जाना लगेमैकदे की दर भी दीवारे-मैखाना लगे।इस कदर पिला कि हमें जमाना मदहोश कहेऔर हमें भी मदहोश सारा जमाना लगे।तिरी दहलीज पर जब भी आऊँ तो, ए खुदामुझे ये कायनात भी एक मैखाना लगे।….. भूपेन्द्र कुमार दवे000001.मैखाने की परछाई, 2.खुद का बिखराव, 3.दिल के दुख,
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वाह क्या ख्याल है …………बहुत उम्दा द्वे जी ………..उत्तम सृजन के लिए बधाई आपको !
अनेक धन्यवाद।
Deewangi ka khoobsoorat chitran Bhupendra…….
Many thanks for the good words.
wahhhhhhh………..gajab…………
Thanks.