प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हमदर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल सेदर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम परदोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल सेबँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमानअब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल सेसेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर मेंस्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल सेआगमन नए दौर का आप जिस को कह रहेआजकल का ये समय भटका हुआ है मूल सेचार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़रमिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल सेअब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल सेमदन मोहन सक्सेना
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सही बात है सब लोगों ने असपनी स्वार्थ की सिद्धि के लिए ईश्वर को भी बांटने लगा है .
उम्दा