आखर आखर योग से, शबद दिये बनवाय ताल मेल संयोग से, दसो दिशा लहराय। शब्द को संधि कीजिये,उपजे मन की बात जो समझ में आ जाये, कोउ न पूछे जात। मन मीठा पकवान सा, रखे सो मिश्री होय वाणी मधु रस प्रीत की,अमृत सा मन धोय। सांची मन की भावना, रखिये मन में आप औरों का भी हो भला, लगे न कोई पाप। नीयति बिल्कुल साफ हो,न हो क्लेश विकार ए मानस तुम भूल रहे, अपने नेक विचार । ं
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बिन्दु जी दोहे अच्छे हैं पर मात्रा मे गड़बड़ी है साथ ही कई दोहों मे तुक भी नहीं मिल रहे हैं….. पहले दोहे मे बनवाय,लहराये …महज मात्रा के लिए किए हैं…दस को दसों करने से ठीक हो जाएगा….. इसी प्रकार 3,4,5वें मे भी दोष हैं….. औऱ 13 मात्राओ पर यति के लिए ,अर्ध विराम लगाना जरूरी है……क्षमा सहित।
madhu jee typing men galati ho gai hai ….. jaisha aap ne likha utni galati mujhse nahi hoti……. han insan hai thodi bahut jaldi bazi mein ho sakti hai……batane ke liye sukriya.
क्षमा कीजिएगा……..मैंने पढ़कर समीक्षा कर दी….अन्यथा न लें …..जी टंकण दोष हो सकता है।
मेरे कहने का मतलब किसी को दुख पहुंचाना नहीं वरन एक दूसरे को समझने का है। टिप्पणी करना बहुत जरूरी है.. टिप्पणी से ही हम सब परिपक्व होते हैं। अन्यथा न लें…. धन्यवाद।
दोहोंके द्वारा गागर में सागर भर दिया है
बहुत बढ़िया
बहुत ही सुन्दर दोहा।
बहुत बढ़िया बिंदु जी ………..!!