मंज़िले मिलती रहीं लेकिन सफ़र ज़ारी रहा मेरा,हुए मुख्तलिफ-ए-राह-ए-गुज़र लेकिन खबर जारी रहा मेरा…मुकम्मल ख़्वाब न हो शायद ये भी महसूस होता हैउम्मीद-ए-कारवाँ पे लेकिन नज़र ज़ारी रहा मेरा…उन्हे ये इल्म न हो शायद शब-ए-महफ़िल मे जीने कालेकिन सहरा मे भी जीने का हुनर ज़ारी रहा मेरा…बेशक़ गुज़ारी है “इंदर” नई सुबहों की हर वो शामलेकिन गुज़रे हुए कल मे बसर ज़ारी रहा मेरा…ख़्वाहिश अब न हो शायद राह-ए-मोहब्बत से गुजरने कालेकिन वो इश्क़ का अब भी असर ज़ारी रहा मेरा… ……इंदर भोले नाथ
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Inder Matle me or doosre sher me ant me jaari rahaa meraa gender choice ke hisaab se gadbad lag raha hi. Vichaar karnaa. Jaise khabar, jaaree rahi hona chahie or nazar ke ssath bhi aisa hi. Lekin tab ghazal ke radeef ki samasyaa hogi.
एक बार और पढ़ लीजिए सर जी शायद मेरी भावनाएँ आप के समझ मे आ जाए…..