धुन
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अब जाए भी तो कहाँ जाए, बचकर बुल और बुलबुल !हर तरफ जाल बिछाया है, आखेटक ने ख़ौफ़ के तार चुन चुन !राह अब नज़र कोई आती नहीं, मगर मंज़िल भी जरूर पाना हैहौंसलें ना हारेंगे, जां अपनी वारेंगे, दिल में जगी अब यही धुन धुन !!
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डी के निवातिया
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बहुत बेहतरीन कटाक्ष पूर्ण पंक्तियाँ आपकी……
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका ……….MADHU JI.
nice sarcasm….
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका ….ANU JI,
सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत कविता
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका ……..MUKTA JI.
सकारात्मक विचार बढ़िया
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका ……….MUKTA JI.
Full of positivity………..
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका …………SHISHIR JI.
bahut khubsurat……
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका …………BINDU JI.
वाह…..बेहद खूबसूरत धुन छेड़ी है आपने…वाह्ह्ह
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार आपका………………BABBU JI.