बेरुखी
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करके बेवफाई, खुद को, नज़रें मिलाने के काबिल समझते होबात बात पर देकर दुहाई मुहब्बत कि, हम ही से उलझते होकहाँ से सीखा हुनर, इश्क में रुसवाई का, तूने मेरे सितमगरगैरो पे करम, हम पे सितम करके, तुम बेरुखी से गरजते हो !!
डी के निवातिया
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sundar panktiya nivatiya ji………..
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..MADHU JI.
Very nice Nivatiyan JI
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..KIRAN JI.
Bahut Sundar, Nivatiya ji…
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..ANU JI.
Bahub khoob Nivatiya Ji …………………….
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..ShiShir Ji.
बहुत अच्छी रचना
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..MUKTA.
wah niwatia jee bahut sunder lazawab.
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..BINDU Ji.
बहुत ही सुन्दर सर।
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..BHAWANA JI.
हाहाहा…नहले पे दहला…..बहुत बढ़िया हुजूर…..
तहदिल शुक्रिया आपका …………………………..BABBU JI.