अभी पलकों में हसीन सपने सजने दोकभी आगे इन्हें हकीकत भी बनने दो।तमाम रात मैकदों को खुला रहने दोतमाम उम्र यूँ ही बस मदहोश रहने दो।ये बहार आके चली भी जावे तो क्यामौसमे-मैकदा साकी, बने रहने दो।भूख मिट जावेगी जरा इंतजार करोउसे बासी रोटी तो इधर फैंकने दो।संभलकर चलना भी मैं सीख जाऊँगाअभी गिर-उठने का मजा जरा चखने दो।दिल को मायूस कर देनेवाली यादेंतुम भूले सभी, कुछ मुझे भी भूलने दो।कफस में वो परकटा पंछी कैद ना रखउसे आजाद होकर बाहर तड़पने दो।तोड़ मत वो फूल वह अब भी महकता हैअभी कुछ देर उसे भी खूब महकने दो।फफोलों की फिकर यहाँ कौन करता हैचल पड़ा है वो मदहोश, उसे चलने दो।ये रास्ता तो मेरी मजार ढूँढ़ता हैचलो, इक मैकदा-सा इधर भी खुलने दो।…. भूपेंद्र कुमार दवे00000
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बहुत उम्दा द्वे जी ………….!
Thanks.
बहुत सुन्दर रचना……….
Thanks.
Behad khoobssorat ashaar Bhupendra ji ………………..
Thanks.
KHUBSURAT BADI ACHHI PAHAL.
वाह…..लाजवाब……मजा आ गया