हम तुम्हारे प्रेम में खुद को भुलाये बैठे है
प्रतीक्षा में चौखट पर नयन टिकाये बैठे है
ह्दय के पटल पर तुम्हारी छवि बसाये बैठे है
प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है।
जीवन की कश्ती में हम तुम्हे मांझी बनाये बैठे है
अपनी खुशियो के समुन्दर में हम तुम्हे पतवार दिये बैठे है
तुम्हारी स्मृति में अश्रुओं से गालो को भिगाये बैठे है
प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है।
कैसे चले तुम बिन हम तुम्हे अपनी मंजिल का हमराही बनाये बैठे है
शब्द हमारे और अधरो पर गीत तुम्हारे सजाये बैठे है
हमारी आती जाती साँसो पर तुम्हे अधिकार दिये बैठे है
प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है।
शरीर से परे प्रेम को आध्यात्मिक बनाये बैठे है
संसार से भटकते मन को तुम पर जमाये बैठे है
ह्दय की पीङा को तुम्हारी प्रीत के तले दबाये बैठे है
प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है।
ह्दय में दो आत्माओ के मिलन का अमर संगम बनाये बैठे है
मिलकर तुमसे मानो साक्षात ईश्वर से मिल बैठे है
अपने सम्पूर्ण जीवन को हम तुम्हारे नाम किये बैठे है
प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है।
- -आस्था गंगवार ©
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Very Nice
धन्यवाद आपका 😊
सुन्दर…और सुन्दर हो सकता है अगर काफिये का मिलान हर जगह होता जैसे कि…
हमारी आती जाती साँसो पर तुम्हे अधिकार दिये बैठे है…..को ऐसे लिख के देखिये….
अपनी साँसों पे हम तुमको अधिकार गंवाए बैठे हैं
हो सकता था ऐसा भी मगर हमने ऐसे लिख दिया अब रचना में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। अभिमूल्यन के लिए आपका बहुत धन्यवाद 🙏
Very very nice
यही आप हिन्दी में कहती तो मुझे और खुशी मिलती बाकि रचना आपने पसंद की इसके लिए आपका धन्यवाद 😊
bhav khoobsurat hai apki…….
बहुत धन्यवाद आपका 😊